Milky Mist

Saturday, 20 April 2024

एक गृहिणी ने ज़ीरो निवेश से खड़ा किया करोड़ों का बिज़नेस

20-Apr-2024 By सोफ़िया दानिश खान
नई दिल्ली

Posted 24 Apr 2018

गृहिणी से कई बिज़नेस की मालकिन होने और शेफ़ व लेखक बनने का नीता मेहता का ३६ साल का सफर असाधारण है.

बात 1982 की है, जब उन्होंने महज 100 रुपए फ़ीस लेकर स्‍टूडेंट्स को खाना बनाना सिखाना शुरू किया.

आज वो सात करोड़ से अधिक कमाई वाले नीता मेहता फ़ूड्स, नीता मेहता स्पाइसेज़ और स्‍नैब पब्लिशिंग की मालकिन हैं.

ये सभी कंपनियां नीता मेहता प्राइवेट लिमिटेड के अंतर्गत आती हैं.

नीता मेहता ने अपनी कुकिंग क्‍लासेज़ सन 1982 में तब शुरू की थी, जब उनके पति का दवाइयों का कारोबार ढलान पर था. अब नीता कई बिज़नेस संभालती हैं. (सभी फ़ोटो - नवनिता)


कहानी पुरानी है.

नीता के पति का दवाइयों का कारोबार था, लेकिन वह अच्छा नहीं चल रहा था. इस कारण नीता ने हाथ बंटाने का फ़ैसला किया.

अपनी मां की तरह वो भी बहुत अच्छा खाना बनाना जानती थीं. यहीं से उनकी जि़ंदगी हमेशा के लिए बदल गई.

दिल्‍ली स्थित ऑफिस में अपनी टीम के साथियों के साथ नी‍ता.


नीता अपनी क्लासेज़ में आइसक्रीम बनाना सिखाती थीं. वो वक्त था जब बाज़ार में निरूला की 21 फ़्लेवर वाली आइस्‍क्रीम की धूम थी और नीता को पता था कि लोग चाहेंगे कि वो आइस्‍क्रीम घर में बनाना सीखें.

उन्होंने सभी फ़्लेवर घर पर बनाना सीखे और उनमें निपुण हो गईं.

नीता बताती हैं, मेरे बच्चे बड़े हो गए थे और उन्हें पहले की तरह मेरी ज़रूरत नहीं थी. इसलिए मैंने घर पर बिना एक पैसे के निवेश के क्लासेज़ शुरू की क्योंकि ज़रूरत की सभी चीज़ें घर पर मौजूद थीं.

एक बार शुरुआत हुई तो उनके स्‍टूडेंट्स उनसे और सीखना चाहते थे. अब नीता ने रेस्‍तरां में मिलने वाली रेसिपीज़ सीखीं.

वो बताती हैं, मैंने कुछ कुकरी क्लासेज़ अटेंड की, लेकिन वो बहुत बोरिंग थीं. हालांकि मैंने सुनिश्चित किया कि मेरी क्लासेज़ ऐसी न हों.

नीता ने चाइनीज़, मुगलई, कॉन्टिनेंटल और भारतीय खाना बनाना सिखाना शुरू किया. वो हर स्‍टूडेंट से तीन दिन के 100 रुपए लेती थीं और हर बैच में 20 स्‍टूडेंट्स को सिखाती थीं.

नीता याद करती हैं, उन दिनों इतना पैसा अच्छी कमाई थी. बाहर सीखने वालों की लाइन लगी रहती थी. वो वेटिंग एरिया में खड़े होकर दूसरों को खाना बनाते देखते रहते थे.

नीता बताती हैं, मैं क्‍लासेज़ में मज़े-मज़े में खाना बनाना सिखाती थी. स्‍टूडेंट्स को रेसिपी लिखाने में समय नष्‍ट करने के बजाय प्रिंटआउट देती थी. छात्रों को खाना बनाने और स्‍वाद चखने में आनंद आता था. दूसरी जगहों के मुकाबले मैं छात्रों से 15 प्रतिशत ज़्यादा फ़ीस लेती थी, लेकिन यह सुनिश्चित करती थी कि लोगों में खाना बनाने को लेकर आत्मविश्वास आए.

समय के अनुसार बदलते हुए कुकिंग बुक की लेखिका का अब यूट्यूब चैनल भी है, यहां सभी रेसिपी आसानी से हासिल की जा सकती है.


चूंकि रेसिपीज़ ट्राइड ऐंड टेस्टेड थीं, इसलिए किसी को पसंद नहीं आने का सवाल ही नहीं था.

वो स्‍टूडेंट्स को खाने से जुड़ी टिप्स और हिंट भी देती थीं, जो उनकी उम्‍मीदों से बढ़कर साबित होती थीं.

उनकी लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ने लगी. इससे उत्साहित होकर और कुछ पब्लिशर दोस्‍तों के सुझाव पर उन्होंने अपनी पहली किताब लिखनी शुरू की.

इस तरह साल 1992 में शुरू हुई वेजिटेरियन वंडर्स. लेकिन किताब पूरी होने के बाद उसे छापने के लिए प्रकाशक मिलना चुनौती साबित हो रहा था.

नीता कहती हैं मेरे पति ने मुझे अपना फ़िक्स्ड डिपॉज़िट तोड़कर खुद किताब छापने के लिए प्रोत्साहित किया. उस वक्त यह एक नई सोच थी.

उस साल किताब की महज 3,000 कॉपियां बिकीं. अपनी क्लासेज़ की लोकप्रियता देखते हुए उन्हें इससे बेहतर बिक्री की उम्मीद थी.

नीता कहती हैं, मैंने कारणों पर विचार किया और मुझे लगा कि मैं अपने पढ़ने वालों को कुछ नया नहीं दे रही थी. मैंने किताब ऐसी स्‍टाइल और फ़ॉर्मेट में लिखी थी जिसे सालों से इस्तेमाल किया जा चुका था.

इसलिए उन्होंने अपनी अगली खुद की प्रकाशित किताब पनीर ऑल द वे का साइज़ छोटा रखा और उसे एक बुकलेट का रूप दिया.

उसमें पनीर की भारतीय, चीनी और कॉन्टिनेंटल रेसिपी के अलावा पनीर खीर जैसे डेज़र्ट की रेसिपी मौजूद थीं.

किताब बाज़ार में आने के बाद हाथोहाथ बिक गई.

पहले ही हफ़्ते किताब की 3,000 कॉपियां बिक गईं. उसके बाद प्री-ऑर्डर्स आने लगे.

सफल कुक बुक का मंत्र मिलने के बाद नीता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

उन्होंने कुकरी पर 400 किताबें लिखीं.

उनकी किताब फ़्लेवर्स ऑफ़ इंडियन कुकिंग ने 1997 में पेरिस में विश्व कुक बुक फ़ेयर अवार्ड जीता.

अपने किचन का मुआयना करतीं नीता.


एक स्‍मार्ट बिज़नेसपर्सन वहीं है, जो सही समय पर अपने नए काम की संभावना को महसूस कर ले. नीता कहती हैं, जब उनकी किताबें छपने लगीं तो अहसास हुआ कि ख़ुद का प्रकाशन केंद्र खोलना चाहिए, ताकि मुनाफ़ा बढ़ सके.

इस तरह साल 1994 में प्रकाशन संस्था स्नैब पब्लिशर्स की शुरुआत हुई. नीता को पता था कि इंटरनेट के आने के बाद कुक बुक के प्रति आकर्षण कम हो सकता है. इसलिए उन्होंने दूसरे लेखकों की लिखी बच्चों की किताबें भी छापनी शुरू कर दीं.

इन किताबों के विषय पौराणिक कथाओं, लोक कथाओं और इतिहास पर आधारित होते थे.

स्नैब की शुरुआत चार लाख रुपए से हुई थी. आज इसका टर्नओवर चार करोड़ रुपए है और आठ कर्मचारी काम करते हैं.

साल 2016 में उन्‍होंने नीता मेहता स्‍पाइसेज़ नाम से मसाले बेचना शुरू कर दिया. उन्‍होंने फूड टेक्‍नोलॉजिस्‍ट से जानकारी ली और अपने अनुभव को भी शामिल किया.

वो बताती हैं, मैंने कभी रेडीमेड मसाले इस्तेमाल नहीं किए थे. मैं हमेशा मसाले पीसकर ख़ुद तैयार करती थी. समय के साथ मुझे महसूस हुआ कि हर किसी के लिए यह उबाऊ काम करना संभव नहीं है. हमारे मसालों में वही सामग्री है जो मैं घर में इस्तेमाल करती हूं. वो खाने का स्वाद बढ़ा देते हैं.

मसालों की पैकेजिंग डिज़ाइन, प्लांट शुरू करने में 20 लोगों की टीम को एक साल लग गया, लेकिन इस मेहनत का फल भी मिला.

बाज़ार में आने के पहले साल में ही नीता मसाले की बिक्री तीन करोड़ रुपए तक पहुंच गई.

नीता कहती हैं, जो लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर सजग हैं, उन्हें पता है वो ताज़ी और सेहत के लिए अच्छी चीज़ खा रहे हैं.

नीता ने साल 2016 में अपने नाम से ख़ुद के मसालों की रेंज नीता मेहता स्‍पाइसेज़ की शुरुआत की है.


इतनी व्यस्तता के बावजूद दिल्ली के वसंत विहार में उनकी क्लासेज़ जारी हैं. वहां उन्होंने साल 2000 में एक आधुनिक किचन अकादमी शुरू की, जहां अभी भी ढेर सारे छात्र आते हैं.

उनका बेटा अनुराग मेहता मार्केटिंग और लॉजिस्टिक्स देखता है. नीता मेहता प्राइवेट लिमिटेड ब्रैंड के अंतर्गत चलने वाले सभी बिज़नेस में उनके पति की 30 प्रतिशत और बेटे की 20 प्रतिशत हिस्‍सेदारी है. शेष हिस्‍सेदारी नीता ने ख़ुद के पास रखी है.

नीता 66 साल की हैं लेकिन वो वक्त के साथ चलने में यक़ीन रखती हैं.

मैंने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया है, जहां सभी व्यंजन बनाने की रेसिपी आसानी से हासिल की जा सकती है.


 

आप इन्हें भी पसंद करेंगे

  • How Two MBA Graduates Started Up A Successful Company

    दो का दम

    रोहित और विक्रम की मुलाक़ात एमबीए करते वक्त हुई. मिलते ही लगा कि दोनों में कुछ एक जैसा है – और वो था अपना काम शुरू करने की सोच. उन्होंने ऐसा ही किया. दोनों ने अपनी नौकरियां छोड़कर एक कंपनी बनाई जो उनके सपनों को साकार कर रही है. पेश है गुरविंदर सिंह की रिपोर्ट.
  • story of Kalpana Saroj

    ख़ुदकुशी करने चली थीं, करोड़पति बन गई

    एक दिन वो था जब कल्पना सरोज ने ख़ुदकुशी की कोशिश की थी. जीवित बच जाने के बाद उन्होंने नई ज़िंदगी का सही इस्तेमाल करने का निश्चय किया और दोबारा शुरुआत की. आज वो छह कंपनियां संचालित करती हैं और 2,000 करोड़ रुपए के बिज़नेस साम्राज्य की मालकिन हैं. मुंबई में देवेन लाड बता रहे हैं कल्पना का अनूठा संघर्ष.
  • Mansi Gupta's Story

    नई सोच, नया बाजार

    जम्मू के छोटे से नगर अखनूर की मानसी गुप्ता अपने परिवार की परंपरा के विपरीत उच्च अध्ययन के लिए पुणे गईं. अमेरिका में पढ़ाई के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि वहां भारतीय हैंडीक्राफ्ट सामान की खूब मांग है. भारत आकर उन्होंने इस अवसर को भुनाया और ऑनलाइन स्टोर के जरिए कई देशों में सामान बेचने लगीं. कंपनी का टर्नओवर महज 7 सालों में 19 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है. बता रहे हैं गुरविंदर सिंह
  • how a boy from a small-town built a rs 1450 crore turnover company

    जिगर वाला बिज़नेसमैन

    सीके रंगनाथन ने अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए जब घर छोड़ा, तब उनकी जेब में मात्र 15 हज़ार रुपए थे, लेकिन बड़ी विदेशी कंपनियों की मौजूदगी के बावजूद उन्होंने 1,450 करोड़ रुपए की एक भारतीय अंतरराष्ट्रीय कंपनी खड़ी कर दी. चेन्नई से पीसी विनोज कुमार लेकर आए हैं ब्यूटी टायकून सीके रंगनाथन की दिलचस्प कहानी.
  • Punjabi girl IT success story

    इस आईटी कंपनी पर कोरोना बेअसर

    पंजाब की मनदीप कौर सिद्धू कोरोनावायरस से डटकर मुकाबला कर रही हैं. उन्‍होंने गांव के लोगों को रोजगार उपलब्‍ध कराने के लिए गांव में ही आईटी कंपनी शुरू की. सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपए है. कोरोना के बावजूद उन्‍होंने किसी कर्मचारी को नहीं हटाया. बल्कि सबकी सैलरी बढ़ाने का फैसला लिया है.